स्त्री जीवन के कई स्वरूप हैं, जिनके मिलने से ही वह सम्पूर्ण हो सकती है। कोई भी एक हिस्सा छीन लिए जाने से वो अधूरी हो जाती है। नारी जीवन के पहलुओं को संयुक्त किए हुए यह काव्य संकलन है, “स्त्री”।
यह संकलन एक सफर है, स्त्री जीवन के संघर्षों का, हर मुश्किल में उसकी हिम्मत और उम्मीद का, रिश्तों में उसके समर्पण और विश्वास का। दुनियां की नापाक भीड़ में वो खुद को कैसे बचाए और संभाले रखती है, कीचड़ में रह कर भी कमल बने रहने की उसकी कोशिश इन कविताओं में है। इस सफ़र में अनकहे जज्बातों का ज़िक्र है, और सवाल है कि स्त्री को अगर कोई समझ नहीं पाया, तो आखिर क्यूं?
कविता I
लेखक होना आम बात नहीं है, और पता है उससे भी ज्यादा विचित्र क्या है? एक स्त्री जब लेखिका बनती है। समाज उन्हें कभी पूरी तरह अपना नहीं पाता। और इतने दायरे बनाए जाते हैं, कि हद नहीं! ये दायरे उनकी जीवनशैली ही नहीं, उनकी लेखनी पर भी होते हैं। क्या आपको पता है, उन लड़कियों का क्या हुआ जिनकी कविताएँं मार दी गईं?
कविता II
एक स्त्री के जीवन का सबसे खूबसूरत पहलू है उसकी मोहब्बत और उस मोहब्बत का निभाया जाना। पर हर स्त्री ये कहाँं निभा पाई है! कुछ लड़कियों की जिंदगी जद्दोजेहद से कभी खाली नहीं हो पाती है। उनके जीवन की मंजिल ही आम रास्तों से होकर नहीं जाती। उनके रास्ते अलग और अजीब हैं, उन्हीं की तरह।
कविता III
जैसे कुम्हार मिट्टी से घड़ा बनाता है, वैसे है हमारी परिस्थितियाँं हमें गढ़ती हैं। सबसे कठिन हालात हमारे लिए धूप जैसे होते हैं, जो हमें रोशनी देते हैं। हर बार परिस्थितियाँं आपको हरा नहीं सकतीं, उनसे लड़कर उनके पार जाने का तरीका आपको ढूंढ लेना होगा। क्यूंकि आप हर बार टूट के बिखर नहीं सकते, आपको अटूट बनना होगा।
कविता IV
स्त्री सुंदर है, पर उससे भी ज्यादा सुंदर है उसका मन। उन्हें हासिल करने की हवस रखने वाली दुनियां ये बात नहीं जानती। अगर स्त्री मन से उनकी नहीं हुई, तो तन से हो ही नहीं सकती। वो भ्रम में हैं जिन्हें लगता है कि बंदिशें लगाने से कोई भी स्त्री उनकी अमानत हो जाती है। जिसका अंतर्मन स्वतंत्र है, वो नारी दुष्प्राप्य है।
कविता V
अनकही जिम्मेदारियों का एक पहाड़ है, जो हर एक लड़की के सर पर चढ़ा दिया गया है। और वो उसे नियति मानकर उठाए हुए चलती है। इस बोझ में कुछ रचनात्मक कर पाना उस लड़की को पता ही नहीं है। उसे बस बुनना आता है, परिवार और समाज। वो भी अपने लिए नहीं।
कविता VI
उड़ने की कोशिश में चिड़िया कितनी बार गिरती होगी! स्त्री-मन की ख्वाहिशें भी ऐसी ही हैं, आंधियों के बाद भी वह उड़ना चाहती है। उसका आसमान उसकी उम्मीदों जितना ही बड़ा होता है, अनंत! ये कविता उम्मीद की है, हिम्मत की है। सपने देखने की क्या हद होनी चाहिए?
कविता VII
एक लंबी हार के बाद की कामयाबी खुशी तो देती है पर अकेला कर जाती है। अकेले लड़ना और चलना आसान नहीं है, पर जब मंजिल ही सबसे अलग हो तो रास्ते होंगे ही। चाहे कितने भी कठिन परिस्थितियाँं हों, ये कविता हिम्मत करने की, और करते रहने की है उनके लिए जो लड़कियाँं अपनी शर्तों पे जीना चाहती हों।
कविता VIII
स्त्री जीवन के स्वरूपों में सबसे खूबसूरत पहलू है जब वो मन से किसी से बंध जाए। ये बंधन, स्वयं वो भी नहीं तोड़ सकती। प्रेम में सिर्फ समर्पण है, एक अटूट विश्वास की ओर। उसके अंदर का स्त्रीत्व उसके जीवन को प्रेम, उम्मीद और हिम्मत से भर देता है। ये कविता समर्पण की है, प्रेम की है।
कविता IX
हम सबके भीतर प्यास है, संवेदना की। दूसरों की भावना से जुड़ पाना, महसूस कर पाना हम सब को भरोसे से जोड़े रखता है। तोड़ देना आसान है, पर जोड़ के मरहम लगा पाना हर किसी को नहीं आता। ये कविता सहानुभूति, संवेदना और शांति की है, भाव और त्याग से जो हमें इंसानियत से जोड़े रखती है।
When fiction tries to be more fiction.. Anyways these words "are all your's"
Super. Looking forward for more 😍
Lovely 🤗