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- హంతకులు
ప్రథమ భాగం సమాజంలో జరిగే ఎన్నో అన్యాయాల మధ్య, మనుషుల మీద చేసే ప్రయోగాలు అత్యంత క్రూరమైనవి. ఆధునిక ప్రపంచంలో ఈ వ్యాపారంలో ఎంత లాభం ఉన్నప్పటికీ, ప్రభుత్వం ఇలాంటి చర్యలను సమర్థించదు. కానీ, ఇంత లాభదాయకమైన అవకాశాన్ని తెలివైనవాళ్ళు వదులుకుంటారా లేదా ఏది ఏమైనా కొనసాగిస్తారా? ఆర్. ఎస్. చింతలపాటి దర్శకత్వం వహించిన “ హంతకులు: ప్రథమ భాగం ” లో ఒక సర్వసాధారణమైన వైద్యుడు తన సొంత ప్రయోజనాల కోసం ఉన్మాదులను నియమించుకుంటాడు. ఆ పయనంలో, ఫార్మసీలో అపూర్వమైన జ్ఞానం కలిగిన ఒక జైలర్ తో సంభాషణ ఎటు దారి తీస్తుందో చూడండి. రెండవ భాగం మనలో అత్యంత క్రూరమైన వ్యక్తికి కూడా న్యాయమైన విచారణ హక్కేనా? వాస్తవాలను సరిగ్గా విశ్లేషించకుండానే న్యాయాన్ని వ్యక్తుల చేతుల్లోకి తీసుకుంటే, మన వ్యవస్థ ఎలా కూలిపోతుందో ఊహించగలమా? కానీ, ఒకవేళ నేరస్థుడు పశ్చాత్తాపం చూపకపోగా, తన ఘాతుకాలపై గర్విస్తూ మాట్లాడితే? అప్పుడు, వ్యక్తులు న్యాయ వ్యవస్థను తమ చేతుల్లోకి తీసుకోవడం సమర్థనీయమా? ఆర్.ఎస్. చింతలపాటి రాసిన “ హంతకులు: రెండవ భాగం ” లో మానవత్వాన్ని గాయపరిచే ప్రాయోగిక వైద్యుడికి న్యాయమార్గం చూపే క్రమంలో న్యాయాధికారులు ఎదుర్కొన్న అంతర్గత సంఘర్షణను హృద్యంగా ఆవిష్కరించారు. ఈ కథ న్యాయానికి సంబంధించిన సున్నితమైన ప్రశ్నలతో మనల్ని ఆలోచనలో ముంచెత్తుతుంది. బృందం ఈ పనికి దర్శకత్వం ఆర్.ఎస్. చింతలపాటి , ఛాయాగ్రహణం: మనోహర్ కోవిరి , ఎడిటింగ్: నిఖిల కొట్నీ , డైలాగ్స్: మధులిక ఆచంట , నటించింది మీనాకుమారి కోనాడ , శ్రీకర్ అయ్యగారి & వికాస్ ఎలమంచిలి మరియు తరుణ్ చింతమ్ సంగీతం.
- इत्तेफ़ाक
उदित और लता कॉलेज के दिनों से साथ थे और उन्होनें अपने रिश्ते को अंजाम देते हुए शादी कर ली। दोनों विपरीत व्यक्तित्व के होते हुए भी एक दूसरे का हाथ थामे जीवन के कठिन रास्तों पर चल रहे थे। लेकिन कब तक? जैसा कि सब लोग समझते थे, वास्तव में वैसी आदर्श जोड़ी थी उनकी? या फिर उनके रिश्ते की कई परतों में कुछ छिपा भी था? निधि पांडे की “इत्तेफ़ाक” पूछती है, मनचाहे व्यक्ती से विवाह करने पर भी, क्या जीवन हमेशा शांत और सरल रहता है? वो शुरुआती ख़ुशी हमेशा रहेगी? क्या जीवन के उतार-चढ़ाव में जीवनसाथी हमेशा साथ देते हैं? किए गए वादे हमेशा निभाए जाते हैं? श्रेय इस कहानी की कथानक आर. एस. चिंतलपाटि द्वारा निर्मित है, निधि पांडे द्वारा लिखी गयी, मधूलिका आचंटा द्वारा संपादित, श्रुति किशोर साही द्वारा आवाज अभिनय, और छायाचित्रण मनोहर कोविर द्वारा किया गया है।
- मन
स्नेहा बोयापल्ली द्वारा कवर फ़ोटो मेरा मन, एक हाड़ मांस के बने ढांचे में, सहेज दिया गया है। ना जाने कितनी कोशिशें की गईं, कितने दावे किए गए, पर सारे, मेरी देह से होकर गुज़र गए। हाथ, आँंखें और इरादे, मुझपर अधिकार जमाने की कोशिश करते रहे। सब व्यर्थ! मेरे मन पर, किसी का अधिपत्य नहीं हो पाया। क्यूंकि, मैं मन से आज़ाद थी। स्वतंत्र! पूर्णतः। मेरे अंतर्मन तक पहुंचना, इंसानी क्षमताओं के परे है। जमीन के टुकड़े के तरह, मैं ना ही नीलाम हो सकती हूँं, ना ही किसी जायदाद का हिस्सा। मैं टुकड़ों में बांटी नहीं जा सकती। मेरा मन, दहेज में बाँंधकर नहीं भेजा जा सकता। वो मेरे भीतर धंसा हुआ है। शरीर से भी परे। सात वचनों में, अस्तित्व का वचन कौन सा है? चूड़ियों की आवाज़ के तले, स्त्रियों का अंतर्मन छुपा दिया गया है। सर ढकने से तात्पर्य, सपने ढकने का तो नहीं था? या सबने मिलकर, सारी बेड़ियाँं गढ़ी हैं, सिर्फ नारी जीवन के लिए ही? जिसने मेरा जीवन बाँंधा हुआ है, उसके लिए मेरा मन बाँंधना असंभव है। तन से परे, मन का क्या? मांस के पुतले को हासिल करने वाले, मेरे मन तक पहुंचने से पहले, अपाहिज हो कर गिर जाएंगे। क्यूंकि, समर्पण किसी का अधिकार नहीं है। समर्पण प्रेम है, प्रेम सत्य है। और शरीर, एकमात्र भ्रम! श्रेय इस संकलन की समीक्षा निधि पांडे द्वारा लिखित, मधूलिका आचंटा द्वारा की गई है, संपादन एड्लिन डिसूजा द्वारा किया गया है, फोटो स्नेहा बोयपल्ली द्वारा लिया गया है और अभिनय निखिला कोट्नी और रश्मिता रेड्डी द्वारा किया गया है। उत्पाद यह संकलन पेपरबैक के रूप में उपलब्ध है।