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घर

Updated: Nov 29

तुम्हारे माथे की व्यथा की लकीरें

मैंने हर्षृंगार के फूलों से मिटा दी हैं।


तुम्हारी पेशानी पर,

मेरे विश्वास की छांव है।


और तुम्हारे मन के भीतर

मैं मंदिर बनाऊंगी, नारायण का ।

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