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मन

Updated: 6 hours ago

मेरा मन,

एक हाड़ मांस के बने ढांचे में,

सहेज दिया गया है।


ना जाने कितनी कोशिशें की गईं,

कितने दावे किए गए,

पर सारे, मेरी देह से होकर गुज़र गए।

हाथ, आँंखें और इरादे,

मुझपर अधिकार जमाने की कोशिश करते रहे।

स्नेहा बोयापल्ली द्वारा कवर फ़ोटो
स्नेहा बोयापल्ली द्वारा कवर फ़ोटो

सब व्यर्थ!

मेरे मन पर,

किसी का अधिपत्य नहीं हो पाया।

क्यूंकि, मैं मन से आज़ाद थी।

स्वतंत्र! पूर्णतः।


मेरे अंतर्मन तक पहुंचना,

इंसानी क्षमताओं के परे है।

जमीन के टुकड़े के तरह,

मैं ना ही नीलाम हो सकती हूँं,

ना ही किसी जायदाद का हिस्सा।

मैं टुकड़ों में बांटी नहीं जा सकती।

मेरा मन,

दहेज में बाँंधकर नहीं भेजा जा सकता।

वो मेरे भीतर धंसा हुआ है।

शरीर से भी परे।


सात वचनों में,

अस्तित्व का वचन कौन सा है?

चूड़ियों की आवाज़ के तले,

स्त्रियों का अंतर्मन छुपा दिया गया है।

सर ढकने से तात्पर्य,

सपने ढकने का तो नहीं था?

या सबने मिलकर,

सारी बेड़ियाँं गढ़ी हैं,

सिर्फ नारी जीवन के लिए ही?

जिसने मेरा जीवन बाँंधा हुआ है,

उसके लिए मेरा मन बाँंधना असंभव है।


तन से परे,

मन का क्या?

मांस के पुतले को

हासिल करने वाले,

मेरे मन तक पहुंचने से पहले,

अपाहिज हो कर गिर जाएंगे।

क्यूंकि,

समर्पण किसी का अधिकार नहीं है।

समर्पण प्रेम है, प्रेम सत्य है।

और शरीर, एकमात्र भ्रम!

श्रेय

इस संकलन की समीक्षा निधि पांडे द्वारा लिखित, मधूलिका आचंटा द्वारा की गई है, संपादन एड्लिन डिसूजा द्वारा किया गया है, फोटो स्नेहा बोयपल्ली द्वारा लिया गया है और अभिनय निखिला कोट्नी और रश्मिता रेड्डी द्वारा किया गया है।


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