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अटूट

मैं,

पाताल की तलहटी से जन्मी हूँं,

पत्थरों को फाड़ कर, उगी हुई घास हूँं।

अब तुम मुझे नहीं मिटा सकते,

अब बहुत देर हो चुकी है।

बहुत!

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